Friday, May 1, 2009

खुश......बदनशीब

आँखे सुंदर हैं मेरी कहतें हैं...
खुशनशीब हूँ शायद जो सुन सकू..
दिल की भावनाओ को आवाज़ दे सकू..
और मा के एहसास को महसूस कर सकू !!!!!


सुंदरता को निहारने को मिली थी आँखे
कहा है सुंदरता???? सर्वत्र केवल बंज़र हैं ....
काश अंधी होती,अंधकार में खो जाती..
रंगीन छलवे से तो पवित्र कालापन बेहेतर????


थक गयी हैं श्रवण बेसुरे राग सुनकर
शोरो को अनसुना करना चाहूं!!!!
कोलाहल के बीच कहीं तो हो सुरीला राग...
निश्बद शांत जीवन को ही मानू||||


भावनाओ के फुवारो से सज़ा हैं जीवन
अवसोस!!! प्यार की नही,,,,छलवे क़ी
स्वार्थ की दीवेश की और ....(ना जाने क्या क्या??????)
अच्छा होता निर्जीब होता ये मन..


हाँ!! सच हैं ...दूर होना चाहती हूँ
समाज के हर एहसास से!!!!!
आपने आत्मा को मजबूत बना चाहती हूँ...
और आपने काया को निर्मल....

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