Friday, September 3, 2010

सरगम

हसी का कैसा रूप है ये..
किन सुरों से छेड़ा साज़ है ये????

हा हा हा..कैसे अंधेरे में रहेते हो..
उफ्फ...ऐसा खाना कैसे खा सकते हो???
उस के पास मेरे से आधिक धन कैसे..
वो अपनी प्रगती का पात्रा नही...
मुझसे सक्षम कोई नही...हा हा हा..|

हरदम हरपल सुनाई देती है मुझे..
ये ईर्ष्या, द्वेषी,अहं की हसी|||
बिनति है कृपया मत हसो...बोखला जाउगि वरना..
हा हा हा...बस करो..मुझे जाने दो...
हा हा हा..कृपया शांत होजाओ...कृपया||

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ही ही ही... दीदी हो रही है बारिश बाहर..
चलो ना हुर्रे...भिगो दिया मैने आपको
संभवतः भिगोया है तुमने मुझे...मेरी आत्मा को
इस पवन जल से और आपनी सुरीली हसी से||
पत्तो में खेलते बारिश की बूंदे और बारिश में तुम..
कैसा आद्भुत सरगम छेड़ रहे है..||
स्तब्ध ,निशब्ध, मोहित बना दिया मुझे..
की आँखों से बहने लगी तुम्हारी सरगम||
दर है... बेसुरा ना होजाए ये सरगम
--तुम्हारी हसी और ये बूँदो की सरगम||
सुनना चाहती हूँ हमेशा हरपल..
--तुम्हारी हसी और ये बूँदो की सरगम||

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