भीड़ की तन्हाई..
सुनो ज़रा रास्ता छोड़ो मेरा
अरे!!! यहाँ वहाँ से ज़्यादा शोर है...
भीड़ में कही खो गयी हूँ
फिर भी तन्हाई का आलम है.....
हीरे को तरह चमकते है मेरे दाँत,
क्यूँ न आ हो, पैसे खर्च होते है हज़ार
थक गयी हूँ इस कोरी हसी से.
हमेशा रोती हूँ भीड़ को हासने में....
कितनी कमज़ोर लाचार हो गयी हूँ
सोख लीया है सबसाहसमेरा
हर चेहेरे में तलाशती हूं वो साहस..
कंधो में उसके बहाना चाहती हूँ आपना दर्द..
लौट जाना चाहती हूँ बाबा के छाँव में...
जमीन का पानी ,,बागान के फल..
से जीवन तृप्त हो मेरा...
खो जाना चाहती हूँ अपने जाहान में||||
खो जाना चाहती हूँ सपनो में अपने,,,
दूर ईन स्वार्थी नज़रों से...
दूर ईन कर्कश आवाज़ो से..
जहाँ सुमधुर धुन बजती हो...... हमेशा |||
घोंघा होती , आपने बचाव में छुप जाती
साथ होता मेरी तन्हाई का वहाँ
समझो फरक है इस तन्हाई में
शांति आत्मसांतुष्टि दिल की हसी मिलती मुझे.....|||