Thursday, November 12, 2009

कैसे

भूल जाओ तुम, सितारें अनेक है..
इन बहारों पर मेरी नूर क नाम दिखेंगे..
नही खिल सकतेह टुमरी क्वाहिशों क फूल..
तुम एक- धोरही दास्तान, मेरा मान नही लुबाह सकती!!


मूह, प्यार, इकरार, ईर्ष्या तुम क्या जानो
स्प्रस किया है दर्द में तड़पना???
चारून तरफ स्नेह प्यार ही जिसके,,
वो क्या जाने स्नेह की तिसनगी???


नही जानती प्यार, तिसनगी, दर्द
पर मैं नही हूँ एक दोराही दास्तान...
मेरी दास्तान तो अधूरी है तेरे स्नेह क बिना.
कैसे बतौन तुझे और कैसे समझौं..


साहशी नही हूँ जसबातों को सबध देने क लिए
बेबास हूँ टे नफ़रत का प्याला पीने क लिए..
जिस रस्स्तें की मिल की पठार हूँ.
उससी रस्स्तें की अभिप्राया हो तुम मेरी


फल गया काजल तेरी नाम क आशुओं से,
वियार्थ है जीवन तेरे अनुपस्थिति से,
शायद घुटकर जीना है मेरे दुर्भाग्या,
क्यूंकी तुम्हे भुला देना का साहस ँझे में नही है!!!

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